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Sunday, 31 December 2017

chahat , ek prem katha

चाहत , एक प्रेम कथा 
आओ सुनाये एक कहानी जिसमें जिसमे न थे राजा न  रानी,
एक थी मालिकाये हुस्न, जो  घूमती थी होकर बेगानी। 

एक था परवाना जो था उस मालिकाये हुस्न का दिवाना,
जब वो चलती थी तो चोरी छुपे उनको देखा करता था,
और मन ही मन मुस्कुराया करता था। 

मालिकाये हुस्न को था अपने हुस्न पर गुरुर ,
तो लड़के को था अपने चाहत पर विश्वास ,
सब कहते थे ये गिरेगा खाई में जरूर ,
लेकिन वो अपने चाहत को पाने की लगाकर बैठा था आस। 

हमेशा देखा करता था मालिकाये हुस्न  की राह ,
और उनको एक नजर देखकर मन ही मन भरा करता था आह 
बीत गए कई दिन बीत गए कई माह ,
पर नहीं पूरी हुई मालिकाये हुस्नको पाने की उसकी चाह। 

मालिकाये हुस्न भी ये बात  रही रही थी जान ,
पर नहीं बनाना चाहती थी उससे अपनी पह्चान ,
मालिकाये हुस्न को था ये डर की 
कहीं हो न जाये वो अपने ही शहर में बदनाम। 

एक दिन चल रही थी मालिकाये हुस्न लग गई ठेस ,
जब तक लड़के ने उनको संभाला , तब तक हो चुकी थी वो बेहोस
जब आँखे खुली तो दोनों की गई नजरे टकरा,
दोनों ने देखा एक दूसरे को और दोनों दिए मुस्कुरा। 

अब तक थे दोनों बेगाने'
पर अब लिख गई दोनों के अफ़साने 
होने लगे  ही चर्चे शहर में ,
की हो गए है दोनों दिवाने। 

  मालिकाये हुस्न के पिता तक पहुँच गए ये संदेश ,
 उनके पिता लौट आये अपने देश ,
रखने लगे वो दोनों पर कड़ी नजर ,
बरसाने वाले थे वो दोनों पर अपना कहर। 

हो गया था उनदोनों पर दोनों पर प्यार का असर गहरी ,
और अब वो मिलने लगे थे चोरी चोरी ,
मालिकाये हुस्न के पिता के पास गई खबर पहुँच ,
सोचने लगे पिता पानी सर से ऊपर हो रहा करना पड़ेगा कुछ। 

जा रहा था खरीदने फूल ,
उधर से आयी गाड़ी उड़ाते हुए धुल ,
गाड़ी का चालक पी रखा था शराब ,
मरी टककर लड़के में निकल गई लड़के की जान,
सुना जब ये खबर मालिकाये हुस्न ने हो गई हालत ख़राब ,
देखा जैसे ही ऍबे प्रेमी की लास निकल गए उनके भी प्राण। 


धन्यबाद 


 प्रदीप प्रदुमन

Tuesday, 26 December 2017

साल 2018  का आगाज हो चुका है। पूरी दुनिया इस नए साल का खुशियां मनाकर स्वागत कर रही हैं।
हम सबको पता है की 2018 का आगाज हो चूका है।  और आज के तिथि में लगभग सभी धर्म व समुदाय के लोग 1 जनवरी को  मनाया जाना नव वर्ष सर्वाधिक प्रचलित है लेकिन इसके बाद भी विभिन्न धर्मों व समाजों द्वारा भिन्न-भिन्न तिथियों पर नव वर्ष मनाए जाने की परंपरा आज भी कायम है। आईए जानते हैं किस धर्म में नया साल कब मनाया जाता है-
हिन्दू नव वर्ष 
हिंदू नव वर्ष का प्रारंभ चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा से माना जाता है। इसे हिंदू नव संवत्सर या नव संवत कहते हैं। ऐसी मान्यता है कि भगवान ब्रह्मा ने इसी दिन से सृष्टि की रचना प्रारंभ की थी। इसी दिन से विक्रम संवत के नए साल का आरंभ भी होता है। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार यह तिथि अप्रैल में आती है। इसे गुड़ी पड़वा, उगादि आदि नामों से भारत के अनेक क्षेत्रों में मनाया जाता है।
हिंदू नव वर्ष का महत्व
भले ही आज अंग्रेजी कैलेंडर का प्रचलन बहुत अधिक हो गया हो लेकिन उससे भारतीय कलैंडर की महता कम नहीं हुई है। आज भी हम अपने व्रत-त्यौहार, महापुरुषों की जयंती-पुण्यतिथि, विवाह व अन्य शुभ कार्यों को करने के मुहूर्त आदि भारतीय कलैंडर के अनुसार ही देखते हैं। इस दिन को महाराष्ट्र में गुड़ी पड़वा तो आंध्र प्रदेश में उगादी पर्व के रूप में भी मनाया जाता है। चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से ही वासंती नवरात्र की शुरुआत भी होती है। एक अहम बात और कि इसी दिन सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना प्रारंभ की थी। अत: कुल मिलाकर कह सकते हैं कि हिंदू नव वर्ष हमें धूमधाम से मनाना चाहिये।

ईसाई नव वर्ष
ईसाई समाज 1 जनवरी को नव वर्ष मनाता है। करीब 4000 वर्ष पहले  बेबीलोन में नया वर्ष 21 मार्च को मनाया जाता था जो कि वसंत के आगमन की तिथि भी मानी जाती थी। तब रोम के तानाशाह जूलियस सीजर ने ईसा पूर्व 45वें वर्ष में जूलियन कैलेंडर की स्थापना की, उस समय विश्व में पहली बार 1 जनवरी को नए वर्ष का उत्सव मनाया गया। तब से आज तक ईसाई धर्म के लोग इसी दिन नया साल मनाते हैं। यह सबसे ज्यादा प्रचलित नव वर्ष है।
इस्लामी नव वर्ष
इस्लामी कैलेंडर के अनुसार मोहर्रम महीने की पहली तारीख को मुस्लिम समाज का नया साल हिजरी शुरू होता है। इस्लामी या हिजरी कैलेंडर चंद्र आधारित है, जो न सिर्फ  मुस्लिम देशों में इस्तेमाल होता है, बल्कि दुनियाभर के मुस्लिम भी इस्लामिक धार्मिक पर्वों को मनाने का सही समय जानने के लिए इसी का इस्तेमाल करते हैं। 
सिंधी नव वर्ष
सिंधी नव वर्ष चेटीचंड उत्सव से शुरू होता है, जो चैत्र शुक्ल द्वितीया को मनाया जाता है। सिंधी मान्यताओं के अनुसार इस दिन भगवान झूलेलाल का जन्म हुआ था जो वरुणदेव के अवतार थे।
सिक्ख नव वर्ष
पंजाब में नया साल वैशाखी पर्व के रूप में मनाया जाता है। जो अप्रैल में आती है। सिक्ख नानकशाही कैलेंडर के अनुसार होला मोहल्ला (होली के दूसरे दिन) नया साल होता है।
जैन नव वर्ष
ज़ैन नववर्ष दीपावली से अगले दिन होता है। भगवान महावीर स्वामी की मोक्ष प्राप्ति के अगले दिन यह शुरू होता है. इसे वीर निर्वाण संवत कहते हैं।
पारसी नव वर्ष
पारसी धर्म का नया वर्ष नवरोज के रूप में मनाया जाता है। आमतौर पर 19 अगस्त को नवरोज का उत्सव पारसी लोग मनाते हैं। लगभग 3000 वर्ष पूर्व शाह जमशेदजी ने पारसी धर्म में नवरोज मनाने की शुरुआत की। नव अर्थात् नया और रोज यानि दिन।
हिब्रू नव वर्ष
हिब्रू मान्यताओं के अनुसार भगवान द्वारा विश्व को बनाने में सात दिन लगे थे । इस सात दिन के संधान के बाद नया वर्ष मनाया जाता है। यह दिन ग्रेगरी के कैलेंडर के मुताबिक 5 सितम्बर से 5 अक्टूबर के बीच आता है ।

अगर आप लोगो को मेरी यह पोस्ट अच्छी लगी हो तो कृपया कमेंट करके मुझे बताये और अगर इससे संभंधित आपके पास कोई जानकारी हो तो कमेंट करे 
               
            धन्यबाद 
प्रदीप प्रदुमन                                                                                  प्रदीप ओझा

Saturday, 23 December 2017

bhagwan waman ki katha



वामन अवतार की कथा  
श्री हरी यानि भगवन विष्णु के पाँचवे रुप है, भगवान वामन। श्री हरी जिसपे एक बार कृपा कर देते है वो धन धान्य हो जाता है उन्हीं के कृपा से
देवताओं ने अमृत-पान किया। उन्हीं की कृपा से असुरों पर युद्ध में वे विजयी हुए। पराजित असुर मृत एवं आहतों को लेकर अस्ताचल चले गये। असुरेश बली इन्द्र के वज्र से मृत हो चुके थे। आचार्य शुक्र ने अपनी संजीवनी विद्या से बलि तथा दूसरे असुरों को भी जीवित एवं स्वस्थ कर दिया। वो ऐसा इसीलिए कर पाए क्योंकि बलि इन्द्र ने राजा बलि को अपने तलवार से पीछे से करदन कटे थे अगर आगे से काटते तो आचार्य शुक्र राजा बलि को जीवित नहीं कर पाते। राजा बलि ने आचार्य की कृपा से जीवन प्राप्त किया था। वे सच्चे हृदय से आचार्य की सेवा में लग गये। शुक्राचार्य प्रसन्न हुए। उन्होंने यज्ञ कराया। अग्नि से दिव्य रथ, अक्षय त्रोण, अभेद्य कवच प्रकट हुए। आसुरी सेना अमरावती पर चढ़ दौड़ी। इन्द्र ने देखते ही समझ लिया कि इस बार देवता इस सेना का सामना नहीं कर सकेंगे। बलि ब्रह्मतेज से पोषित थे। देवगुरु के आदेश से देवता स्वर्ग छोड़कर भाग गये। अमर-धाम असुर-राजधानी बना। शुक्राचार्य ने बलि का इन्द्रत्व स्थिर करने के लिये अश्वमेध यज्ञ कराना प्रारम्भ किया। सौ अश्वमेध करके बलि नियम सम्मत इन्द्र बन जायँगे। फिर उन्हें कौन हटा सकता है।

जन्म
'स्वामी, मेरे पुत्र मारे-मारे फिरते हैं।' देवमाता अदिति अत्यन्त दुखी थीं। अपने पति महर्षि कश्यप से उन्होंने प्रार्थना की। महर्षि तो एक ही उपाय जानते हैं- भगवान की शरण, उन सर्वात्मा की आराधना। अदिति ने फाल्गुन के शुक्ल पक्ष में बारह दिन पयोव्रत करके भगवान की आराधना की। प्रभु प्रकट हुए। अदिति को वरदान मिला। उन्हीं के गर्भ से भगवान प्रकट हुए। शंख, चक्र, गदा, पद्मधारी चतुर्भुज पुरुष अदिति के गर्भ से जब प्रकट हुए, तत्काल वामन ब्रह्मचारी बन गये। महर्षि कश्यप ने ऋषियों के साथ उनका उपनयन संस्कार सम्पन्न किया। भगवान वामन पिता से आज्ञा लेकर बलि के यहाँ चले। नर्मदा के उत्तर-तट पर असुरेन्द्र बलि अश्वमेध-यज्ञ में दीक्षित थे। यह उनका अन्तिम अश्वमेध था।

तीन पद भूमि
छत्र, पलाश, दण्ड तथा कमण्डलु लिये, जटाधारी, अग्नि के समान तेजस्वी वामन ब्रह्मचारी वहाँ पधारे। बलि, शुक्राचार्य, ऋषिगण, सभी उस तेज से अभिभूत अपनी अग्नियों के साथ उठ खड़े हुए। बलि ने उनके चरण धोये, पूजन किया और प्रार्थना की, कि जो भी इच्छा हो, वे माँग लें।
'
मुझे अपने पैरों से तीन पद भूमि चाहिये!' बलि के कुल की शूरता, उदारता आदि की प्रशंसा करके वामन ने माँगा। बलि ने बहुत आग्रह किया कि और कुछ माँगा जाय; पर वामन ने जो माँगना था, वही माँगा था।
'
ये साक्षात विष्णु हैं!' आचार्य शुक्र ने सावधान किया। समझाया कि इनके छल में आने से सर्वस्व चला जागा।
'
ये कोई हों, प्रह्लाद का पौत्र देने को कहकर अस्वीकार नहीं करेगा!' बलि स्थिर रहे। आचार्य ने ऐश्वर्य-नाश का शाप दे दिया। बलि ने भूमिदान का संकल्प किया और वामन विराट हो गये। एक पद में पृथ्वी, एक में स्वर्गादि लोक तथा शरीर से समस्त नभ व्याप्त कर लिया उन्होंने। उनका वाम पद ब्रह्मलोक से ऊपर तक गया। उसके अंगुष्ठ-नख से ब्रह्माण्ड का आवरण तनिक टूट गया। ब्रह्मद्रव वहाँ से ब्रह्माण्ड में प्रविष्ट हुआ। ब्रह्मा जी ने भगवान का चरण धोया और चरणोदक के साथ उस ब्रह्मद्रव को अपने कमण्डलु में ले लिया। वही ब्रह्मद्रव गंगा जी बना।
'
तीसरा पद रखने को स्थान कहाँ है?' भगवान ने बलि को नरक का भय दिखाया। संकल्प करके दान करने पर तो नरक होगा।
'
इसे मेरे मस्तक पर रख ले!' बलि ने मस्तक झुकाया। प्रभु ने वहाँ चरण रखा। बलि गरुड़ द्वारा बाँध लिये गये।
'
तुम अगले मन्वन्तर में इन्द्र बनोगे! तब तक सुतल में निवास करो। मैं नित्य तुम्हारे द्वार पर गदापाणि उपस्थित रहूँगा।' दयामय द्रवित हुए। प्रह्लाद के साथ बलि सब असुरों को लेकर स्वर्गाधिक ऐश्वर्यसम्पन्न सुतल लोक में पधारे। शुक्राचार्य ने भगवान के आदेश से यज्ञ पूरा किया।
महेन्द्र को स्वर्ग प्राप्त हुआ। ब्रह्मा जी ने भगवान वामन को 'उपेन्द्र' पद प्रदान किया। वे इन्द्र के रक्षक होकर अमरावती में अधिष्ठित हुए। बलि के द्वार पर गदापाणि द्वारपाल तो बन ही चुके थे। त्रेता युग में दिग्विजय के लिये रावण ने सुतल-प्रवेश की धृष्टता की। बेचारा असुरेश्वर के दर्शन तक कर सका। बलि के द्वारपाल ने पैर के अँगूठे से उसे फेंक दिया। वह पृथ्वी पर सौ योजन दूर लंका में आकर गिरा था।
कुछ अन्य मत 
कुछ  लोगो का कहना है की जो वामन गावं  के ओझा कहे जाते है वो लोग भगवन वामन के ही वंश है। जो की नाटे कद के होते है (जरुरी नहीं के सभी वामन गावं  के ओझा नाटे कद के ही होंगे लेकिन नाटे कद के ओझा लोगो की मात्रा ज्यादा है ) क्योंकि भगवन वामन भी नाटे कद के ही होते है। 

प्रदीप ओझा